न्यूयॉर्क
अमेरिका के बाजार में मंदी की आहट है. एक तरफ जहां राष्ट्रपति चुनाव की आमद है, यह तय होना बाकी है कि देश का नया राष्ट्रपति कौन होगा. इसके साथ ही खबरें आ रही हैं कि अमेरिका के बाजार की हालत कुछ खास अच्छी नहीं है. ऐसे में एक खबर ने अमेरिका के निवेशकों को डरा दिया है. दरअसल, अमेरिका के सोशल मीडिया पर लिपस्टिक चर्चा का विषय बना हुआ है. आइए जानते हैं लिपस्टिक और अमेरिका के बाजार में क्या नाता है. और ये क्यों चर्चा में है.

दरअसल, इसकी वजह बर्कशायर हैथवे के मालिक वॉरेन बफे हैं, जो दुनिया के सबसे अमीर शख्सों में शुमार होते हैं. उनके बारे में यह भी कहा जाता है कि उनका निवेश अमेरिकी बाजार का लिटमस टेस्ट माना जाता है. अगर वह किसी कंपनी में पैसा लगाते हैं या किसी कंपनी से पैसा निकालते हैं, तो इससे बाजार के रुझान का अंदाजा लगाया जाता है.

वॉरेन बफे के निवेश से मची हलचल

इसी बीच वॉरेन बफे ने एक कॉस्मेटिक्स कंपनी में निवेश किया है. दिलचस्प बात यह है कि मंदी के दौर में लिपस्टिक की बिक्री बढ़ जाती है. अब यह माना जा रहा है कि वॉरेन बफे ने मंदी का पूर्वानुमान लगा लिया है. इसी से मुनाफा कमाने के लिए उन्होंने कॉस्मेटिक्स कंपनी में निवेश किया है.

आज हम आपको मंदी (Recession) की पहचान करने वाले कुछ ऐसे इंडेक्स के बारे में बताएंगे, जिनके बारे में आपने पहले शायद ही सुना होगा. क्या आप जानते हैं कि पुरुषों के अंडरवियर (Men’s underwear index) और महिलाओं की लिपस्टिक (Lipstick index) से भी अर्थव्यवस्था को समझा जाता है? आइए जानते हैं कैसे होता है ये.
अंडरवियर की सेल बताती है अर्थव्यवस्था का हाल

अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के पूर्व प्रमुख एलन ग्रींसपैन (Alan Greenspan) मंदी पर कुछ इसी तरह नजर रखते थे. वह देखते थे कि पुरुषों के अंडरवियर की ब्रिक्री कैसी रही है और मंदी का अनुमान लगाते थे. अगर आप एलन ग्रींसपैन की इस थ्योरी को बेतुका समझ रहे हैं तो आप ये भी जान लीजिए कि उनकी गिनती बड़े अर्थशास्त्रियों में होती है. वह 1987 से लेकर 2006 तक फेडरल रिजर्व के प्रमुख भी रह चुके हैं. अभी वह करीब 98 साल के हो चुके हैं.

वह मानते हैं कि वैसे तो पूरे साल अंडरवियर की बिक्री समान बनी रहती है, लेकिन अगर मंदी आने लगती है तो इसमें गिरावट देखने को मिलती है. इसके पीछे उनका तर्क ये होता है कि मंदी के दौरान लोग इतना अधिक दबाव महसूस करते हैं कि वह अंडरवियर पर भी कम पैसे खर्च करने लगते हैं. अंडरवियर एक जरूरी चीज है, जिस पर पैसे कम खर्च करने का मतलब है कि शख्स अधिक से अधिक पैसे भविष्य के लिए बचाना चाहता है या फिर उसके पास पैसे ही नहीं हैं. अंडरवियर पर लोग कम खर्च करने लगते हैं, क्योंकि वह कपड़ों के अंदर होता है, तो अगर वह थोड़ा पुराना या अगर थोड़ा फटा हुआ भी होगा तो उससे कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा.

क्या है लिपस्टिक इंडेक्स.

दरअसल इस टर्म का इस्तेमाल एसटी लाउडर के चेयरमैन लियोनार्ड लॉडर किया था. लियोनार्ड लॉडर अमेरिका के बड़े इन्वेस्टर हैं. साल 2000 की मंदी में देखा कि महिलाओं की लिपस्टिक की सेल तेजी से बढ़ गई.अमेरिका में 1929 से 1933 के दौरान आए ग्रेट डिप्रेशन के वक्त भी कॉस्मेटिक्स का प्रोडक्शन बढ़ा था. कुछ ऐसा ही 2008 की ग्लोबल मंदी के बाद भी देखने को मिला था.

इसके पीछे क्या वजह है इस पर काफी स्टडी की गई. ऐसा माना जाता है अच्छे आर्थिक हालात में महिलाएं ज्यादा कपड़े खरीदती हैं. वहीं, बुरे दौर में महिलाओं लिपस्टिक खरीदना ज्यादा पसंद करती हैं.

लिपस्टिक इफेक्ट से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि मु्श्किल वक्त में महिलाएं खुद को बेहतर महसूस कराने के लिए सस्ते लेकिन आकर्षक सौंदर्य उत्पादों की ओर रुख करती हैं. यह एक तरह से उनके कॉन्फिडेंस को बनाए रखने का आसान और कम खर्चीला तरीका है.

कई स्टडी में ये भी बात सामने आई है की मंदी के दौर में कॉस्मेटिक कंपनियों को उतना नुकसान नहीं उठाना पड़ा, जितना अंदाजा लगाया गया था. इसकी एक बड़ी वजह लिपस्टिक ही है.

इस बात में कितनी सच्चाई है कुछ उदाहरणों से समझते हैं

अमेरिका में 11 सितंबर 2001 को हुए आतंकी हमले ने देश को गहरे आर्थिक संकट में धकेल दिया. मंदी के इस दौर में, इंवेस्टोपेडिया की रिसर्च के अनुसार, लिपस्टिक की बिक्री में दोगुना इजाफा हुआ.

2007 से 2009 के बीच की आर्थिक मंदी, जो 19 महीने तक चली. इस मंदी ने लाखों अमेरिकियों को बेरोजगार कर दिया. इस संकट के बावजूद, लोरियल और एस्टी लॉडर जैसी प्रमुख कॉस्मेटिक कंपनियों ने मजबूत राजस्व वृद्धि दर्ज की.

ग्रेट डिप्रेशन के दौरान 1929 से 1933 के बीच अमेरिका में ग्रेट डिप्रेशन के दौरान, जब औद्योगिक उत्पादन आधा हो गया, तब भी कॉस्मेटिक्स की बिक्री में वृद्धि देखी गई. खास तौर से, लिपस्टिक की बिक्री में वृद्धि हुई, जबकि महंगे कॉस्मेटिक्स की बिक्री में कमी आई.

अमेरिका में मंदी की आशंकाएं क्यों है तेज

दरअसल, अमेरिका में कई प्रमुख इकोनॉमिक इंडिकेटर्स में कमजोरी के संकेत नजर आ रहे हैं. बेरोजगारी के दावे जनवरी के निचले स्तर से काफी बढ़ गए हैं और जुलाई में बेरोजगारी दर बढ़कर 3 साल के उच्चतम स्तर 4.3 फीसदी पर पहुंच गई है. इसके अलावा मैन्युफैक्चरिंग PMI 9 महीने के निचले स्तर पर लुढ़क गया है.

 

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