अगर आपके चेहरे पर बार-बार काले धब्बे उभर रहे हैं तो इसे गंभीरता से लें, क्योंकि कई बार ये आपकी सुंदरता को नुकसान पहुंचा देते हैं। बेदाग चेहरे का नूर तो देखते ही बनता है, मगर इसे बरकरार रख पाना भी आसान नहीं है, क्योंकि कभी चेहरे पर मुंहासे हो जाते हैं तो कभी काले धब्बे। आजकल बदलती जीवन-शैली और गलत आदतों के कारण त्वचा पर काले, भूरे, गुलाबी, ग्रे या लाल रंग के धब्बों की समस्या देखी जा रही है, जो अक्सर चेहरे, माथे और नाक पर अधिक दिखाई देते हैं। इनको मेलास्मा या हाइपरपिग्मेंटेशन भी कहा जाता है।

हाइपरपिग्मेंटेशन और मेलास्मा
हाइपरपिग्मेंटेशन त्वचा पर पड़ने वाले गहरे धब्बों को कहा जाता है। ये तब होते हैं, जब त्वचा में मेलेनिन नामक प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है। इससे त्वचा का रंग गहरा और काला नजर आने लगता है, जिस कारण डार्क स्पॉट दिखने लगते हैं। इसी तरह मेलास्मा भी मेलेनिन के अधिक मात्रा में बनने के कारण होता है, जिसमें गालों पर और नाक के आस-पास काले, भूरे, गुलाबी धब्बे बन जाते हैं। कुछ महिलाओं के चेहरे पर इसके निशान छोटे होते हैं तो कुछ के चेहरे पर बड़े नजर आते हैं।

क्या है वजह
ये अक्सर धूप में निकलने, उम्र बढ़ने, हार्मोन असंतुलन या त्वचा के आघात आदि से उत्पन्न हो सकते हैं। यह समस्या महिलाओं में अधिक देखी जाती है, क्योंकि वे जीवन में ढेर सारे हार्मोनल परिवर्तनों से गुजरती हैं, फिर चाहे वो उम्र बढ़ना हो, गर्भावस्था हो या रजोनिवृत्ति। ये बदलाव चेहरे पर धब्बे और पिग्मेंटेशन का कारण बनते हैं।

वहीं फंगल संक्रमण भी चेहरे पर खुजली और काले धब्बे का एक आम कारण है। आज जंक फूड भी हमारी जीवन-शैली का अहम हिस्सा बन चुका है, जिसके अधिक सेवन से आंशिक लिवर फंक्शन की समस्या हो सकती है। इससे भी चेहरे का रंग बदलने लगता है। इसके अलावा बढ़ता वर्क लोड भी इसका एक महत्वपूर्ण कारक है।

उपचार जान लें
इस समस्या से निपटने के लिए विटामिन ई और सी से भरपूर पौष्टिक आहार का सेवन करना फायदेमंद हो सकता है। साथ ही पर्याप्त मात्रा में पानी पीना त्वचा को हाइड्रेट रखता है और शरीर में जमा टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद करता है। अच्छी नींद भी त्वचा की मरम्मत और पुनर्निर्माण में सहायक होती है। इसके अलावा योग और ध्यान को दिनचर्या में शामिल करके आप तनाव को दूर करने का प्रयास कर सकती हैं, क्योंकि सुंदर और निखरी त्वचा के लिए तनाव का आपसे दूर रहना बेहद जरूरी है।

फोटोप्रोटेक्शन और सनस्क्रीन बेहतर
डॉ. अमित कुमार मीणा, सीनियर रेजिडेंट, त्वचा विज्ञान विभाग, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, दिल्ली का कहना है कि हाइपरपिग्मेंटेशन एक त्वचा विकार है, जो मेलानोसाइट गतिविधि और मेलेनिन उत्पादन को प्रभावित करने वाले कई आंतरिक और बाहरी कारकों से होता है। इन कारकों में अत्यधिक धूप में रहना, गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन, सरसों के तेल या आंवला तेल से एलर्जी और विशेष रूप से आनुवंशिक कारक शामिल हैं। इन स्थितियों के लिए वर्तमान उपचार में फोटोप्रोटेक्शन, डिपिगमेंटिंग एजेंट और लेजर ट्रीटमेंट शामिल हैं। इस परेशानी में यूवी किरणों से बचना जरूरी है और इसके लिए फोटोप्रोटेक्शन और सनस्क्रीन बेहतर रहती है। आपको विशिष्ट उपचार के लिए त्वचा रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए और केमिस्ट की ओवर-द-काउंटर दवाओं से बचना चाहिए।

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